आज खामोश है सब कुछ जहाँ मे(poem about contribution)
आज खामोश है
सबकुछ जहान में ,
एक भँवर सा
उठ रहा है
मेरे ईमान में
कभी तोहफे में
मिली थी आजादी
हमें ,
क्या भूल गए
हम खुदगर्जी के
तूफ़ान में .
आज मेरी निगाहें जहाँ
भी पड़ती हैं
कई आँखें बहुत
कुछ कहकर टपकती
हैं
कई पेट खाली
अभी तक हैं
कई नंगे पड़े
और कांप रहे
बदन हैं
कई बचपन बिखरते और
उजड़ते योवन हैं ,
कई लाचार बुढ़ापे और
आश में ढलते
जीवन हैं .
आखिर कब तक
होंगे ये भ्रस्टाचारी शासन
कब तक सुनेंगे बूढ़े
नेताओं के भासन
कब तक तोहफे
में देंगे हम
हिंदुस्तान का सिंघासन
बस अब और
नहीं करसकते हम
अपने जज्बातों का
दमन .
“अनुपम” तो
कवि है आज
बह गया भावनाओं के
अरमान में
मगर कुछ तो
करना होगा यारों
इस जीवन के
संग्राम में
नहीं तो कब
तक डूबे रहेंगे हम
अपने अपने अभिमान में
आज वक़्त है
कुछ करने का
हम कूद पड़ें
मैदान में
चलो खुद को
पीछे छोड़ दे,चले हिंदुस्तान के
उत्थान में .
जी जरूर आएँगे और मेरी रचना शामिल करने के लिए धनयाबाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ,सटीक लिखा है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ,सटीक लिखा है ।
जवाब देंहटाएंJi dhanyawad
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