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ख्वाहिशों के दामन में...............

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                      ख्वाहिशों के दामन में ख्वाब ऐसे पले हैं एक भूल की सजा सदियों तक जले हैं मेरी पुकार को नाकारा गया हर बार यूँ अब निर्दोष होकर भी लबों को सिले हैं मजबूरों पर सितम ढाते हैं छोटी सोच वाले गरीबों की वस्ती में बस आँसू चले हैं लोगों की फितरत में इंसानियत कहाँ हैं चमक धमक की खातिर अपनों को छले हैं मौला तेरी भी कुदरत ने निर्बल को झुकाया है समुन्दर से जाकर सदा दरिया ही मिले हैं

वो मिला था उन दिनों में मुझे.............

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वो मिला था उन दिनों में मुझे जब वो चलते हुए ख्वाब जैसा था उसकी आँखें भी गुनगुनाती थी वो एक जबाब जैसा था उसके गेसुओं से छाँव होती थी वो मूरतें सबाब जैसा था लोग करते थे गुफ्तगू उसकी उसका होना ख़िताब जैसा था वो खामोश था इमारतों कि तरह फिर भी कहता था दास्ताँ मुझे वो मिला था उन दिनों में मुझे वो मिला था उन दिनों में मुझे. हर एक जुबाँ पर नाम था उसका हर धड़कन कि आवाज था वो सबसे मिलकर भी न मिला सा एक वही अंदाज था वो या हकीकत या फ़साना या एक नमाज था वो दिल कि दहलीज पर आया खुदा का ताज था वो करके बेचैन कई रातों को जगाया था मुझे वो मिला था उन दिनों में मुझे वो मिला था उन दिनों में मुझे. जब वो हिरनी के जैसे चलता था मेरे एहसास में वो पलता था सबसे उपर किया था याद मुझे वो मिला था उन दिनों में मुझे ये जज्बात बढे सुहाने हैं पर मुद्दत पुराने हैं अब हमारी मोहब्बत के जुदा जुदा ठिकाने हैं मगर मेरा हाल आज भी आखिरी शाम जैसा है   काश मैं जान पाता वो आज कैसा है वो आज कैसा है वो मिला था उन दिनों में मुझे जब वो चलते हुए ख्वाब जैसा था.

मेरे इस देश में ...............

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मेरे इस देश में तख्तों की चालें चलती रहती हैं कभी तेरी कभी मेरी सरकारें बनती रहती हैं यूँही जनता को ठगने का खेल सरे आम होता है मगर फिर भी सराफत की मिसालें चलती रहती हैं. कहीं बिजली कहीं पानी की जंगें चलती रहती हैं कहीं नंगी कहीं भूखी सी जाने पलती रहती हैं सियासी लोग बस मीठे से वादे रोज करते हैं अमीरों कि गरीबों पर मनमानी चलती रहती है. हर एक दफ्तर में नोटों की रबानी चलती रहती है जहाँ देखो वहाँ थोड़ी बेईमानी चलती रहती है यहाँ हर काम चडाबे से बड़ा तत्काल होता है बिना पैसों के वर्षों तक परेशानी चलती रहती है. हर एक पेसे में मंत्री की सिफारिस चलती रहती है कहीं रिश्तों और नातों की गुजारिश चलती रहती है सियासत की नजर में हर तरफ बस रोजगारी है मगर बेरोजगारों की ख्वाहिस टलती रहती है. हिसाबों में करोडों की गुमनामी चलती रहती है हुकूमत की दिनों दिन तानाशाही बढती रहती है जिन्होंने तब कहा था मैं तो बस जनता का सेवक हूँ उन्ही की आज जनता पर शैतानी चलती रहती है. यहाँ कागज़ की योजना की प्रक्रिया बनती रहती है मगर सड़कों पर काबिल कई जवानी ढलती रहती है न जाने