संदेश

जुलाई, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

माँ

चित्र
तू ममता का सागर है , मैं तेरी   एक बूँद हूँ माँ तेरे आँचल के साए में पला , मैं एक फूल हूँ माँ तू परमात्मा  है,   मैं   तेरे चरणों की   धुल हूँ माँ तू ही मेरा सब कुछ , मैं तेरा ही मकबूल हूँ माँ मैंने बचपन में तेरे पल्लू  को पकड़ चलना  सीखा तो  मुसीबत  में डट करके  जलना  सीखा  मैंने तेरे साए  में जीवन  को जीना सीखा हर  एक गम  को हसकर  के  पीना सीखा तू  मेरी गुरु द्रोण, मैं तेरा अर्जुन हूँ माँ तू मैया यसोदा , मैं तेरा कृस्न हूँ माँ कभी अनजाने में जो तुझको रुलाया तन्हाई में रातों को मैं सो नहीं पाया चाहे  न  बताया  और   न जताया बार बार तेरी ख़ुशी की खातिर मैं गिड गिडाया  तू छमा की मूरत,मैं गलती की सूरत हूँ माँ मगर तू मेरी जरूरत,मैं तेरी जरूरत हूँ माँ     तू माने या न माने तू ही मेरा सुकून है माँ तेरी ख़ुशी की खातिर ही मेरा ये खून है माँ तेरे  कदमो  में रखदुं जहाँ को  तेरे लिए ही  ये जूनून है माँ तू कमल  सी कोमल,मैं कोई शूल  हूँ माँ जो भी हूँ तेरी परवाह में जलने बाला अंसूल हूँ माँ.

हर बार की तरह वो बात नहीं.....................

चित्र
  हर  बार  की  तरह  इस  बार  वो  रात  नहीं  हर  एक  चीज  है  वही  पर  वो  बात  नहीं  कभी  सुना  था  जो  वो  गुजर  रहा  हे  मेरे  सामने  मगर  उसे  रोकपाऊं  वो  मेरी  औकात  नहीं  जो  बारिश  की  बूंदें गुन गुनाती   थी  अक्सर  जो  शरद  हवाएं  छू  जाती  थी  अक्सर  लगता  रूठें  हैं  मुझसे  अब सारे  मंजर  मैं  बही  हूँ  मगर  अब चाँद   मेरे  साथ  नहीं  कमी  तो  कुछ  नहीं  पर  अब  वो  जज्बात  नहीं  बड़ी  मुश्किल  से  संभालता  हूँ  हर  एक  बात  को  फिर  वही  बात  करने  को  मचलता  हूँ  हजारों  बार  सजदे  और  दुआओं   में  माथे को   रगड़ता  हूँ  “अनुपम ” तो समझ   न सका  रब्बा  अब  तू  ही  बता  फिजाएं क्यूँ  सदा  आबाद   नहीं  जब  सुकून  था  मेरे हिस्से   में  वो  हिस्सा  क्यूँ  आज  नहीं  

आज मैंने खुद से सवाल पूछा ...............

चित्र
आज मैंने खुद से सवाल पूछा  क्या स्वयं की  बर्बादी  का, जिम्मेदार  होगा  दूजा    दिल से मेरे आवाज आई सायद अभी हालात  का, कारन नहीं खोजा. हर बात पर ओरों पर, ऊँगली उठाते हैं कभी खुद अपनी गली से, क्यूँ नहीं जाते हैं सच्चाई साफ़ दिखजाएगी, यदि मन साफ़ करलें  समस्या खुद सुलझ जाएगी, अहम् का त्याग करलें. तू - तू मैं - मैं से निकल कर, अभी तक  नहीं सोचा जिम्मेदारी के नाम पर, किसी और पर लादा  बोझा जो भोगा, इसी  आचरण का परिणाम होगा क्या कभी एक से, दो का काम होगा इसीलिए कहता हूँ, सभी मिलकर चढ़ाई करते हैं देश में फैली बीमारी की, एक साथ सफाई करते हैं हम साथ चलेगे, बनकर हवा का झोखा खुद बा खुद मिट जाएगा, जिसने भी हमे रोका मैं "अनुपम" अब  सवाल, आप सभी से करता हूँ कि आपने कभी, अन्दर से बहार देखा? या खींच रखी है आपने, कोई सीमा रेखा?                                                                                                     अनुपम चौबे

मैं एक बेरोजगार हूँ ...................

चित्र
मैं इसी देश में  बसने बाला, सच्चाई से जीने बाला मगर अब भार हूँ ,क्योंकि मैं एक बेरोजगार हूँ,मैं एक बेरोजगार हूँ  बचपन मेरा बीत गया लोगों से सुनते सुनते मैं देश का आधार हूँ ,मगर आज मै नाकार हूँ क्योंकि मैं एक बेरोजगार हूँ, मैं एक बेरोजगार हूँ. कैसी नीतियां हैं सरकारी, कि  भिखारी आज भी भिखारी अपनी जेबों को भर रहे, नेता से लेकर अधिकारी  इससे तो ज्यादा अच्छी थी, अंग्रेजों क़ी अत्याचारी मगर किसको बताऊँ, मैं खुद एक बेकार हूँ क्योंकि मैं एक बेरोजगार हूँ, मैं एक बेरोजगार हूँ. कैसा दर्द होता है, कैसी होती है जलन सियासी लोग क्या जाने, खालिपेट क़ी तपन कुछ न करपाने का सूनापन,एक उपकार का  जीवन मैं भ्रस्टाचारी तंत्र का,अपारित अधिकार हूँ मगर  मैं मजबूर नहीं, और न गुनेहगार हूँ क्योंकि मैं "अनुपम" हूँ ,न क़ी भारत क़ी सरकार हूँ मैं एक बेरोजगार हूँ ,मैं एक बेरोजगार हूँ अब भी न समझे उनके लिए, मैं कोटि कोटि आभार हूँ क्योंकि मैं एक बेरोजगार हूँ,मैं एक बेरोज गार हूँ.                                                                            :-अनुपम

ऐ देश मेरे.............

चित्र
मैं तेरा एहसान कैसे चुकाऊ , मिला तुझसे है क्या   कैसे बताऊ ऐ देश मेरे सौबार , जान तेरे दर पर लुटाऊं   तमन्ना इतनी है मरने से पहले तेरे मैं काम आजाऊँ तुझे   छोड़ कर जाने का ख्याल न   एक पल लाऊं   तेरी माटी की खुसबू की महक से चैन मैं पाऊं   छोड़ मंदिर की घंटी और मस्जिद की अजानों   को   समूचे विश्व में   बस एक तेरा गुणगान गाऊं न मुझको लालशा है धन धान्य और न महलों की   न झूटी शान शौकत और न बेमोल ढेलों की मुझे बस आरजू है तेरे नाम की दौलत कमाऊं   कभी गंगा कभी यमुना को छूकर नित नित सीश झुकाऊं जुड़ा है तुझसे जो इतिहाश उसको फिर से दौहराऊं लिखे जो गीत मेरी आत्मा पर हर एक जुबान पर लाऊं   हर एक चेहरे की खुद मुस्कान बंजाऊं जय हो जय हो का जयगान कर्बाऊं वन्देमातरम कहने का मतलब सबको समझापाऊं है दबा मेरे सीने में   क्या   तुझको कैसे मैं बतलाऊं ऐ देश तेरे मायने हैं क्या तुझको कैसे मैं जतलाऊं                  

paani............

चित्र
कभी दीवारों की सीलन में कभी छत की मुंडेरों पर जमा होता है पानी मौसम की अंगड़ाई से निकला वो खिड्किओं पर थमा पानी बारिश के झोंकों के साथ लाता  पुरानी  वीरानी हवा   के साथ बहता  नदिओं सा  या जज्बातों सा रूमानी हर एक बूँद याद दिलाती है वो यादें सुहानी  कहीं झील सा गहरा समुन्दर सा विशाल पानी झरनों की रफ़्तार देखकर मेरी सोच सा लगता है पानी कहीं सड़कों के गद्दों में भरा मेरे संकोच सा पानी ओश की चादर की तरह अतीत पर बिछा है पानी मानो किसी ने प्यार में मोती सा संजोया है पानी लहरों की तरह आज़ाद मेरे ख्यालों सा है आसमानी या गंगा सा पावन कोई मासूम सा बचपन है या अल्हड जवानी यूँ तो लिखता रहूँगा मैं "अनुपम" असीम कहानी वो पहली फुआर लायी मिटटी की खुसबू मेरी निशानी जाओ किसी प्यासे से पूछो क्या चीज है एक बूँद  पानी मेरी रग रग में बसा है  मेरे एहसास सा है पानी                                                                                                                    -: अनुपम चौबे 

हर पल हर रोज...........

हर पल हर रोज नयी सुरुआत कर रहा हूँ मैं   खुद को खुद ही संभालें हुए आगे बढ़ रहा हूँ मैं कुछ अनकहे हालातों से गुजर रहा हूँ मैं   फिर भी जिन्दगी को जिन्दगी की तरह जी रहा हूँ मैं अपने अल्फासों को आवाज देने की कोशिश में   एक नया आगाज कर रहा हूँ मैं अपने आघातों को लब्जों में बयां करके   किसी की वाह वाह का इन्तेजार कर रहा हूँ मैं आज जहाँ मैं हूँ कल कोई और   था कल कोई और होगा   बस बेसलीका होकर जज्बातों को आम कर रहा हूँ मैं दिल से उठी लहरों की खातिर ये कलाम   लिख रहा हूँ मैं यही अंदाज है मेरा सभी को " अनुपम " सलाम कर रहा हूँ मैं                                                                                                       -: अनुपम चौबे