हर बार की तरह वो बात नहीं.....................
हर बार की तरह इस बार वो रात नहीं
हर एक चीज है वही पर वो बात नहीं
कभी सुना था जो वो गुजर रहा हे मेरे सामने
मगर उसे रोकपाऊं वो मेरी औकात नहीं
जो बारिश की बूंदें गुन गुनाती थी अक्सर
जो शरद हवाएं छू जाती थी अक्सर
लगता रूठें हैं मुझसे अब सारे मंजर
मैं बही हूँ मगर अब चाँद मेरे साथ नहीं
कमी तो कुछ नहीं पर अब वो जज्बात नहीं
बड़ी मुश्किल से संभालता हूँ
हर एक बात को फिर वही बात करने को मचलता हूँ
हजारों बार सजदे और दुआओं में माथे को रगड़ता हूँ
“अनुपम ” तो समझ न सका रब्बा
अब तू ही बता फिजाएं क्यूँ सदा आबाद नहीं
जब सुकून था मेरे हिस्से में वो हिस्सा क्यूँ आज नहीं
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