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एक पगली याद बहुत ही आती है

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जब यारों की महफ़िल में अचानक छिड़े चर्चा मोहब्बत बाली, या फिर नुक्कड़ बस्ती दूर गली में कोई दिखती है भोली भाली, करूँ जतन पर,दिल पर मेरे छुरियाँ सी चल जाती हैं सच कहता हूँ,एक पगली मुझको याद बहुत ही आती है एक नाम जो,तीरथ था मेरा एक गली जो,काशी मथुरा थी अब कहाँ रहे वो मंजर सारे हर ख़्वाहिश भी,कतरा-कतरा थी भूले भटके कभी कहीं से उसकी तस्वीर अगर मिल जाती है सच कहता हूँ,एक पगली मुझको याद बहुत ही आती है प्रेम प्रसंग पर,कोई फ़िल्म हो या मम्मी दीदी वाले नाटक वधु चरित्र वाली हर लड़की खोले अतीत वाले फाटक तब हृदय वेदना,और अश्क़ों को झूठी,मुस्कान मेरी छल जाती है सच कहता हूँ,एक पगली मुझको याद बहुत ही आती है पाया था,मैंने भी उसको मन्नतों के लंबे,समर लड़कर हर आहट पर,सजदा था मेरा थामा था उसको,गिर पड़कर अब मैं नहीं!तो फिर कौन? किसको?मेरा हल बनाती है? सच कहता हूँ,एक पगली मुझको याद बहुत ही आती है जज्बातों को जरा सजा दूँ गज़ल कोई बन जाती है सब कहते हैं मैं लिखता हूँ पर अर्थ तो वो ही लाती है नींद सुकून उम्मीदें स्वाहा गर फ़िक्र तेरी पल जाती है सच कहता हूँ,तू पगली मुझको या