paani............








कभी दीवारों की सीलन में कभी छत की मुंडेरों पर जमा होता है पानी
मौसम की अंगड़ाई से निकला वो खिड्किओं पर थमा पानी
बारिश के झोंकों के साथ लाता  पुरानी  वीरानी
हवा   के साथ बहता  नदिओं सा  या जज्बातों सा रूमानी
हर एक बूँद याद दिलाती है वो यादें सुहानी 
कहीं झील सा गहरा समुन्दर सा विशाल पानी
झरनों की रफ़्तार देखकर मेरी सोच सा लगता है पानी

कहीं सड़कों के गद्दों में भरा मेरे संकोच सा पानी

ओश की चादर की तरह अतीत पर बिछा है पानी
मानो किसी ने प्यार में मोती सा संजोया है पानी
लहरों की तरह आज़ाद मेरे ख्यालों सा है आसमानी
या गंगा सा पावन कोई मासूम सा बचपन है या अल्हड जवानी
यूँ तो लिखता रहूँगा मैं "अनुपम" असीम कहानी
वो पहली फुआर लायी मिटटी की खुसबू मेरी निशानी
जाओ किसी प्यासे से पूछो क्या चीज है एक बूँद  पानी
मेरी रग रग में बसा है  मेरे एहसास सा है पानी 
                                                                                                                  -: अनुपम चौबे 

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