मेरे इस देश में ...............




मेरे इस देश में तख्तों की चालें चलती रहती हैं
कभी तेरी कभी मेरी सरकारें बनती रहती हैं
यूँही जनता को ठगने का खेल सरे आम होता है
मगर फिर भी सराफत की मिसालें चलती रहती हैं.
कहीं बिजली कहीं पानी की जंगें चलती रहती हैं
कहीं नंगी कहीं भूखी सी जाने पलती रहती हैं
सियासी लोग बस मीठे से वादे रोज करते हैं
अमीरों कि गरीबों पर मनमानी चलती रहती है.
हर एक दफ्तर में नोटों की रबानी चलती रहती है
जहाँ देखो वहाँ थोड़ी बेईमानी चलती रहती है
यहाँ हर काम चडाबे से बड़ा तत्काल होता है
बिना पैसों के वर्षों तक परेशानी चलती रहती है.
हर एक पेसे में मंत्री की सिफारिस चलती रहती है
कहीं रिश्तों और नातों की गुजारिश चलती रहती है
सियासत की नजर में हर तरफ बस रोजगारी है
मगर बेरोजगारों की ख्वाहिस टलती रहती है.
हिसाबों में करोडों की गुमनामी चलती रहती है
हुकूमत की दिनों दिन तानाशाही बढती रहती है
जिन्होंने तब कहा था मैं तो बस जनता का सेवक हूँ
उन्ही की आज जनता पर शैतानी चलती रहती है.
यहाँ कागज़ की योजना की प्रक्रिया बनती रहती है
मगर सड़कों पर काबिल कई जवानी ढलती रहती है
न जाने कैसी मिट्टी के बने नेता हमारे हैं
इनकी मातम की होली पर दीवाली चलती रहती है.
कभी संस्कारों की भट्टी पर रोटियाँ सिकती रहती हैं
जहाँ एक ओर बदनों की नुमाइश सजती रहती है
कहीं धर्मों कहीं जाती की बातें लोग करते हैं
यूँही गीता कुरानों की मंडियां चलती रहती है.    अनुपम चौबे

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    साझा करने के लिए आभार!
    लिखते रहिए मित्रवर!

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  2. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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    1. धन्यवाद् आपका संजय जी आप मेरे ब्लॉग के सदस्य बनेंगे तो मुझे ख़ुशी होगी

      हटाएं

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