तेरे गुरूर ने मोहब्बत को
तेरे गुरूर ने मोहब्बत को, अफसाना बना दिया
मेरी चाहत ने मुझे इश्क में, दीवाना बना दिया
तू माने या न माने, मैं तेरा हम नफस
हूँ सदा
मैंने दिल को तेरी यादों का, मयखाना बना दिया
सुबह शाम का हिसाब, वर्षों से कहाँ रख
पाया
तेरी बेरुखी ने लम्हों को, एक ज़माना बना दिया
मैं फाकीर हूँ! मोहब्बत के शहर
में, मेरी जाना
तेरी इनायत ने ग़मों का, एक खजाना बना दिया
ये सारा जहाँ भी एक तेरी ही, सुनता गया हर सूं
तुझे शमा-ऐ-मोहब्बत, और मुझे परवाना बना दिया
मगर एक रूह से की थी, बेइंतेहा आशिकी मैंने
खुदा के करम ने इश्क़ को, सूफ़ियाना बना दिया
मेरी गजल को दर्पन के सामने रख देना यारों
मैंने शब्दों से मेरी तकदीर का आशियाना बना दिया “
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