उसको मनाना चाहिए था



मुझे एक बार फिर उसको मनाना चाहिए था
जो घर टूटा तो फिर उसको बनाना चाहिए था

जिया था संग मैं ता उम्र जिन सवालो के
उसे उनका मतलब बताना चाहिए था

उसका हर बार ये कहना कि तुम न समझोगे
तो खुद आकर फिर मुझे समझाना चाहिए था

बड़े तीखे से लहजे में कहा मैं भूल जाऊँगा
तो फिर क्यूँ याद रखता हूँ भुलाना चाहिए था

बिछुड़ने और मानाने में जियें तुम बिन भला कैसे
तो फिर जिन्दा हैं अबतक क्यूँ मरजाना चाहिए था

कटे वर्षों अकेले में तड़प दुनिया के मेले में
तुम्हें एक रात बस मेरी बिताना चाहिए था

मैं सब कुछ माफ़ कर देता गिलायें साफ़ कर देता
एक रोज ही सही पर तुमको आना चाहिए था

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 24 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आपकी लिंक पर मेरी रचना मोजूद ही नहीं धन्यवाद

      हटाएं

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