यादों का महल



एक एक लम्हा जोड़ कर जो यादों का महल बनाया है
उसके भीतर जाकर देखूँ तो साया भी पराया है
हर बात पर सोचता हूँ किसी और का मोहताज हूँ मैं
आँखें मेरी हैं पर ओरों के देखता ख्वाब हूँ मैं
यूँ तो ताकते हैं लोग गौर से समुंदर के नीले पानी को
कोई उससे जाकर पूछे उसकी दर्दे कहानी को
आज मालूम पड़ा कई समझदारों से
अपने आस पास गुजरते कई बेसहारों से
जिन्दगी की उथल पुथल तो हमारी ही खता है
तभी तो मौत के बाद ही जन्नत में बसर मिलता है
ये मत सोच अनुपम” कि एक तेरे यार ने ही तुझे सताया है
यहाँ कईयों ने बफा के पैमाने को कभी बनाया कभी बिगाड़ा है.

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