जो कभी लिखी थी बचपन में(A Poem About broken Desires)



जो कभी लिखी थी बचपन में, वो कविता मेरा आज हुई
जो कल तक थीं मेरा जीवन, वो बातें अब इतिहास हुई
दुनिया की आपा धापी में, कब इतने आंगे पहुँच गये
नन्ही आँखों के कुछ सपने, वो वक़्त के पंक्षी नोंच गये
थोड़ा जीकर मन को मारा हर ख्वाहिश को हमने वारा
मैं जीता हूँ कई जंग मगर, ये मालूम है खुदसे हारा
एक रौनक थी जिनके आने से वो खुशियाँ अब उपहास हुई
जो कल तक थीं मेरा जीवन, वो बातें अब इतिहास हुई
जो कभी लिखी थी बचपन में, वो कविता मेरा आज हुई

यहाँ वहाँ भटके उपवन में पीर उदासी के सावन में
दिन में शोर हुआ आँगन में रात कटी फिर सूनेपन में
कुछ उलझी सी डोरों को स्वयं ही सुलझा लेता हूँ
और कुछ सीधे से रश्तों को खुद ही उलझा लेता हूँ
कभी रुका मैं मंजिल से जाने कितनी मर्यादाओं में
रोक लिया था कभी मुझे जब अपनों की बाधाओं ने
सच छिपा अभिनय किया यह घटना ही बस खास हुई
जो कल तक थीं मेरा जीवन, वो बातें अब इतिहास हुई
जो कभी लिखी थी बचपन में, वो कविता मेरा आज हुई

एक अरसे की बात हुई मैं स्वयं में जीता और मरता हूँ
एक स्वप्न को पाने की खातिर लाख जतन मैं करता हूँ
जिस डगर मैं चलता हूँ किसी का कोई उपकार नहीं है
मैं हारा हूँ कुछ सीखा हूँ वो जीत ही थी कोई हार नहीं है
कुछ अतीत के झोखे फिर भी बुनियाद हिला ही जाते हैं
तन्हा कितना भी रह्लूँ मैं एक तुमसे मिला ही जाते हैं
इतनी गहराई से टूटा हूँ टूटन में भी न आवाज हुई
जो कल तक थीं मेरा जीवन, वो बातें अब इतिहास हुई
जो कभी लिखी थी बचपन में, वो कविता मेरा आज हुई

टिप्पणियाँ

  1. महेश बारमाटे माही27 अगस्त 2016 को 5:49 pm बजे

    बहुत खूब सूरत..
    कुछ कुछ मेरी सी
    आपकी ये कविता आज हुई।

    जवाब देंहटाएं
  2. जी शुक्रिया जी कोशिश यही रहती है कि एक कविता में कई लोगों को बांध सकूँ
    आते रहिए अपने ब्लॉग पर और शेयर और जॉइन करिए
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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