जाने रिश्तों में कैसी कमी आ गयी


जाने रिश्तों में कैसी कमी आ गयी
मनो गर्मी में जैसे नमी आगई
जब सोया था तो था आसमां में
जब उठा तो अचानक जमीं आ गयी
पहले चला करती थी इत्र भरी हवाएं
आज पड़े कुछ छींटे खून के
जैसे हवाएं भी खून से सनीं आ गयीं.
बिकती है बाजारों में दोस्ती मैंने देखा है
जैसे दोस्ती भी मिलों में बनी आगयी
हँसके मिले थे कल परसों जो चेहरे
अभी देखा तो मुंह मोड़ लिया
मनो बर्षों से कोई ठनी आ गयी
मुफलिसी तू घरसे न निकलना बहुत जालिम हैं लोग
आज देखा पड़ोस में तो रहने कोई धनी आ गयी
अनुपम तू निकलजा यहाँ से यहाँ कुछ नहीं बचा
कुछ उलझी होती ये डोर तो सुलझा भी लेते
मगर ये डोर बहुत ही घनी आ गयी
जाने रिश्तों में कैसी कमी आ गयी
मनो गर्मी में जैसे नमी आ गयी.

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