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यूँही बारिश में कई नाम लिखे थे

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यूँही   बारिश   में   कई   नाम   लिखे   थे , अपने   हाथों   से   कई   पैगाम   लिखे   थे   अब   तक   जमी   हैं   वो   यादों   की   बुँदे , जिनके   आगोश   में , सुबह   शाम   लिखे   थे ,                                            आज   तनहा   हूँ   मै   तो   ये   सोचता   हूँ , अपने   अकेलेपन   से   यही   पूंछता   हूँ , कहाँ   हे   वो   जिसकी   खातिर   हमने , जमाने   के   कई   गुलफाम   लिखे   थे . जिंदगी   की   तो   मगर   ये   कहानी   पुरानी   है , कल   कोई   और   था   इसके   पैमाने   पर , आज   " अनुपम " की   ये   कहानी   है   , कोई   लाख   भुलाए   पर   केसे   भूलेगा , जिसे   देखकर   मोहब्बत   के   इम्तिहान   लिखे   थे .   यूँही   बारिश   में   कई   नाम   लिखे   थे ........... 

मेरी दुआओं को असर

मेरी दुआओं को असर नहीं मिलता  खुदके लिए ही अक्सर नहीं मिलता   मेरे लिखने को जिगर नहीं मिलता उस रोज वहाँ तू अगर नहीं मिलता   मैंने ढूंढे हैं बहुत समझने वाले यहाँ इन गीतों को समझे पर नहीं मिलता जो दिल में उतरे आखिरी मोड़ तक  यहाँ वहाँ अब वो नजर नहीं मिलता   इश्क बिकता है बाजार में सुना था मैंने खोजा लेकिन इधर नहीं मिलता कई रूह भी नीलाम सरेआम हो गयी मैं भी लेता पर तू उधर नहीं मिलता   

गुफ्तगू

 वो जब तुम बात करने लगती होना मुझसे     तो खिल उठता है मेरा ये मायूस चेहरा           और ये दिल दौड़ने लगता है               कल्पनाओं के घोड़ों पर              नदी पहाड़ जंगल झरने    फिर तुम जब चली जाती हो यूंही बेरुखी से तो सो जाता है दिल यथार्थ के उदास बिस्तर पर

खरगोश

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मैं चाहता हूं कि चला जाऊं एक ऐसी जगह जहां लोग न हों न हो कोई चिंता न कोई बंधन कर सकूं जहां सिर्फ चिन्तन|२ जहां हों दरख़्त विशाल प्राचीन जिनके तने को बाहों में भरकर जान सकूं अतीत उनका और कह सकूं अपनी व्यथा जहां नदियां किसी पर्वत से उतरती हों और फैल जाती हों किसी मैदान में चादर की तरह जहां रात को आसमां काला हो कि देख सकूं हर एक तारे को जहां तक भी नज़र जाती हो और महसूस कर पाऊं खुदको सुन पाऊं सांसों की आवाज और धड़कन को दौड़ते हुए मैं चाहता हूं कि चला जाऊं एक ऐसी जगह जहां धर्म न हो न हो कोई समाज न कोई रिवाज और सुन सकूं खुदकी दबी आवाज|२ मगर फिर एक खरगोश दिखता है मुझे जो कूंदता फिरता है मेरे आगे पीछे और निहारता है एक आशा भरी निगाहों से कि मेरे सीबाह उसका कोई भी न हो उसकी चंचल कलाबाजियां देख कर मेरा सूना हृदय भी उल्लास से भर जाता है उसके नादान मगर मुश्किल सवालों में मैं भूल जाता हूं संसार के सारे दुखों को उसके चेहरे की एक झलक भर से मेरे उदास जीवन में भी एक मुस्कान खिल जाती है हां वो खरगोश मेरी बेटी ही है जो मुझे जीना सिखाती है और उसके बिना अब कोई भी यात्र

मेरी दुआओं को असर नहीं मिलता

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मेरी दुआओं को असर नहीं मिलता खुदके लिए ही अक्सर नहीं मिलता मेरे लिखने को जिगर नहीं मिलता उस रोज वहाँ तू अगर नहीं मिलता मैंने ढूंढे हैं बहुत समझने वाले यहाँ इन गीतों को समझे पर नहीं मिलता जो दिल में उतरे आखिरी मोड़ तक यहाँ वहाँ अब वो नजर नहीं मिलता इश्क बिकता है बाजार में सुना था मैंने खोजा लेकिन इधर नहीं मिलता कई रूह भी नीलाम सरेआम हो गयी मैं भी लेता पर तू उधर नहीं मिलता     

एक पगली याद बहुत ही आती है

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जब यारों की महफ़िल में अचानक छिड़े चर्चा मोहब्बत बाली, या फिर नुक्कड़ बस्ती दूर गली में कोई दिखती है भोली भाली, करूँ जतन पर,दिल पर मेरे छुरियाँ सी चल जाती हैं सच कहता हूँ,एक पगली मुझको याद बहुत ही आती है एक नाम जो,तीरथ था मेरा एक गली जो,काशी मथुरा थी अब कहाँ रहे वो मंजर सारे हर ख़्वाहिश भी,कतरा-कतरा थी भूले भटके कभी कहीं से उसकी तस्वीर अगर मिल जाती है सच कहता हूँ,एक पगली मुझको याद बहुत ही आती है प्रेम प्रसंग पर,कोई फ़िल्म हो या मम्मी दीदी वाले नाटक वधु चरित्र वाली हर लड़की खोले अतीत वाले फाटक तब हृदय वेदना,और अश्क़ों को झूठी,मुस्कान मेरी छल जाती है सच कहता हूँ,एक पगली मुझको याद बहुत ही आती है पाया था,मैंने भी उसको मन्नतों के लंबे,समर लड़कर हर आहट पर,सजदा था मेरा थामा था उसको,गिर पड़कर अब मैं नहीं!तो फिर कौन? किसको?मेरा हल बनाती है? सच कहता हूँ,एक पगली मुझको याद बहुत ही आती है जज्बातों को जरा सजा दूँ गज़ल कोई बन जाती है सब कहते हैं मैं लिखता हूँ पर अर्थ तो वो ही लाती है नींद सुकून उम्मीदें स्वाहा गर फ़िक्र तेरी पल जाती है सच कहता हूँ,तू पगली मुझको या

अपने उस गाँव में

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पीपल की छाँव में अपने उस गाँव में सकरी और उजड़ी पर दिलकश उन राहों में टूटे से घर में जलती दोपहर में छिपते छिपाते दिल के शहर में क्या अब भी कोई सुबह शाम से मिलती है राधा कोई क्या घनश्याम से मिलती है जमुना के कोई मुहाने की दस्तक होती है दिल के किबाड़ों पे अब तक इठलाते मौसम और मोहब्बत के किस्से कब तक अकेले सिलूँ मैं वो हिस्से तुम भी लिखो और मुझको बता दो जेठ की आंधी अब भी क्या तूफ़ान से मिलती है बड़े जतन कर सबरी क्या श्री राम से मिलती है वो मिलजुल के रहना सराफत का गहना हर एक आपदा को सदा साथ सहना वो ईद और दीवाली जो संग संग मनायीं यहाँ खीर पूरी वहाँ सेवइयां थी खायीं यहाँ मुझको वैसा न दिखता समर्पण टूटा हुआ सा अब मेरा है दर्पण वहाँ क्या अब भी गीता कभी कुरान से मिलती है सभी बंधन भूल आरती क्या अजान से मिलती है

जितना है याद तुम्हें

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जितना अब तक है याद तुम्हें, मैं उतना भूल आया हूँ तुमने हर राह दिये थे काँटे, मगर मैं फूल लाया हूँ जिन गलियों की अमर कहानी, जिनकी यादें पानी पानी कुछ बची है शब्दों में मेरे, उन गलियों की धूल लाया हूँ कुछ भ्रम थे मेरे टूट गए थे, जब अपने ही रूठ गए थे जब मैं बदला और वो बदले, कुछ बदले हुए उसूल लाया हूँ जो ख़त रह गए अनखोले से, जो बोल रहे अनबोले से जो बाकी है अब तक संदेशे, एसे ही फिजूल लाया हूँ जहाँ पढ़े थे प्रेम विषय पर, सब वारा था एक विजय पर एहसासों के ऐसे पावन, मैं यादों के स्कूल लाया हूँ जितना अब तक है याद तुम्हें, मैं उतना भूल आया हूँ तुमने हर राह दिये थे काँटे, मगर मैं फूल लाया हूँ