आईने में तेरी सूरत
आईने में तेरी सूरत तुझसे जब पूछेगी कल
बिन मेरे सजने सम्बरने क्या मजा श्रृंगार का है
वो कहाँ है दे गया जो रूप का अभिमान ये
ये बताओ उसके बिन अब क्या मजा संसार का है.
आईने में तेरी सूरत तुझसे जब पूछेगी कल
बिन मेरे सजने सम्बरने क्या मजा श्रृंगार का है.
जब कोई खामोश साये तुम को जब यूँ घेर लेंगे
तेरे होठों की हंसी को जब वो तुझसे छीन लेंगे
तेरे आँसू की नदी को जब कोई न थाम लेगा
तब तुम्हे एहसास होगा दर्द ये किस हार का है.
आईने में तेरी सूरत तुझसे जब पूछेगी कल
बिन मेरे सजने सम्बरने क्या मजा श्रृंगार का है.
गैर जब कोई तुम्हारी जुल्फों में उलझा रहेगा
तेरे साये के तले जब आहें लेकर वो बढेगा
तेरी यादों के भँवर में एक मेरा आभास होगा
खुद ब खुद तुम जान लोगी प्यार किस आधार का है.
आईने में तेरी सूरत तुझसे जब पूछेगी कल
बिन मेरे सजने
सम्बरने क्या मजा श्रृंगार का है.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (31-07-2016) को "ख़ुशी से झूमो-गाओ" (चर्चा अंक-2419) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार आपका जी
जवाब देंहटाएंWell Written!
जवाब देंहटाएंthanks a lot uppal ji
जवाब देंहटाएंWaah.. bhut achey 😍😍😍
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