एक अदना सा कमरा

मेरे कॉलेज के दिनों में एक अदना सा कमरा था जहाँ उन दिनों मेरा वक्त गुजरा था मैंने देखा नहीं उसे अरसे से और क्या पता कभी देख भी न पाऊं मगर जिन्दा है अभी भी जहन में यहाँ वहाँ दिल के किसी कौने में मैं अकेले ही रहता था वहाँ खुदसे ही बातें करता था अक्सर लेटे लेटे घंटों सोचा करता था मुझे शौक था दीवारों पर तश्वीरें लगाने का मानो कल की ही बात हो वो तश्वीर आज भी मुझे घूरती है कहीं कौने में किताबें खुली पड़ी हैं मेरे बिस्तर पर सिल्बटें आज भी नयी हैं कमरे की खिड़कियाँ जो पिछबाड़े में थीं बंद नहीं होती थीं पड़ोस की आंटी की आवाज जैसे आज ही गूंजी थी फिर अचानक एक दिन कोई आया मेरा अपना सा मुझसे मेरा कमरा बाँटने उसके साथ बिताई यादें आज भी आती है घंटों हंसी की आवाज सुना जाती है एक कूलर लाया था मैं गर्मियों के दिनों में उसकी पहली ठंडक आज भी गहरी नींद सुलाती है मैं अपनी किचन में चाय ब ना ता था उसे भी पिलाता था लौकी की सब्जी बहुत पसंद थी उसको मैं अपने हाथों से पकाता था उसको खिलाता था कैद हैं मेरी जिन्दगी के कई घंटे उधर बस आजाद होना ही नहीं चाहते ...