ख्वाहिशों के दामन में...............

ख्वाहिशों के दामन में ख्वाब ऐसे पले हैं एक भूल की सजा सदियों तक जले हैं मेरी पुकार को नाकारा गया हर बार यूँ अब निर्दोष होकर भी लबों को सिले हैं मजबूरों पर सितम ढाते हैं छोटी सोच वाले गरीबों की वस्ती में बस आँसू चले हैं लोगों की फितरत में इंसानियत कहाँ हैं चमक धमक की खातिर अपनों को छले हैं मौला तेरी भी कुदरत ने निर्बल को झुकाया है समुन्दर से जाकर सदा दरिया ही मिले हैं