इंसान कहाँ हैं
जाने कौन से गणतंत्र की बातें हर साल यूँही हम करते हैं
इंसान कहाँ हैं मुझे दिखा दो जिनसे हक़ को हम लड़ते हैं
जिसकी परिभाषा में ही बसता जनता का शासन
क्यूँ राजा बनता है वो जिसको मिलता है आसन
क्या देंगे अधिकार हमें जो खुद मन के भिखारी हैं
भूखों को राशन के बदले बस मिलता है भासन
दशकों बीत गए लेकिन हम तीन चीज से मरते हैं
रोटी कपडा और मकान इन दैत्यों से हम डरते हैं
इंसान कहाँ हैं मुझे दिखा दो जिनसे हक़ को हम लड़ते हैं
मैंने भी सोचा अवसर पर गुणगान देश का कर डालूँ
जो अतीत लहू से सींचा है पन्ना पन्ना में भर डालूँ
किन शब्दों में लिखता पर जब आज निराशा बादी है
मैं कवि हूँ सब कुछ देख भाल आँखों पर पर्दा कैसे डालूँ
जिनकी अय्यासी का पैसा हम अपनी जेब से भरते हैं
और स्वयं कहीं झोपड़ पट्टी में अक्सर यूँही सड़ते हैं
इंसान कहाँ हैं मुझे दिखा दो जिनसे हक़ को हम लड़ते हैं
जाने क्यूँ हम इतना लाचार बने हैं
धर्म जात में बटने का आधार बने हैं
कुछ करना है कुछ पाना है तो संग सभी को आना है
हम क्यूँ अबला का लुटता एक संसार बने हैं
चलो उठो गणतंत्र दिवस पर हम सभी प्रतिज्ञा करते हैं
खुद से पहले अपना जीवन माँ के चरणों में धरते हैं
इंसान कहाँ हैं मुझे दिखा दो जिनसे हक़ को हम लड़ते हैं
जाने कौन से गणतंत्र की बातें हर साल यूँही हम करते हैं
इंसान कहाँ हैं मुझे दिखा दो जिनसे हक़ को हम लड़ते हैं
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (26-01-2014) को "गणतन्त्र दिवस विशेष" (चर्चा मंच-1504) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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६५वें गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपको भी गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएँ और मेरा सादर धन्यवाद् मेरी रचना को अपना सम्मान देने के लिए
हटाएंसुन्दर सूत्र चयन |
जवाब देंहटाएंshukriya
हटाएंगणतंत्र दिवस कि हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर विचार !
जवाब देंहटाएं६५ वीं गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं !
नई पोस्ट मेरी प्रियतमा आ !
नई पोस्ट मौसम (शीत काल )
सुन्दर प्रस्तुति …………भ्रष्टाचार मिटाना चाहते हो तो पहले खुद को बदलो
जवाब देंहटाएंअपने धर्म ईमान की इक कसम लो
रिश्वत ना देने ना लेने की इक पहल करो
सारे जहान में छवि फिर बदल जायेगी
हिन्दुस्तान की तकदीर निखर जायेगी
किस्मत तुम्हारी भी संवर जायेगी
हर थाली में रोटी नज़र आएगी
हर मकान पर इक छत नज़र आएगी
बस इक पहल तुम स्वयं से करके तो देखो
जब हर चेहरे पर खुशियों का कँवल खिल जाएगा
हर आँगन सुरक्षित जब नज़र आएगा
बेटियों बहनों का सम्मान जब सुरक्षित हो जायेगा
फिर गणतंत्र दिवस वास्तव में मन जाएगा
सभी का आभारी हूँ
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