तुझमे डूबना ......♥♥♥
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तुझमे डूबना ऐसा कि मनो फिर तमन्ना ही नहीं बचने की जब भी आता हूँ करीब तेरे जगती है आरजू बिखरने की मेरे लिये जीना मरना तड़पना आँसू सब बातें हैं जरा सी तेरे दीदार भर से मिट मिट कर मेरी हस्ती संबर जाती सुनो जाना सुनो जाना मैं तुझसे कोई सिकवा नहीं करता मुझे मालूम है इन्तेजार में तेरे शहर भर का हुजूम लगता मैं कोई रात में तेरी याद में बह गया जज्बात-ऐ-इश्क बस हूँ तू मूरत-ऐ-गुरूर मैं तेरे हुश्न अदायगी में ही खलस बस हूँ सबेरे की “किरन” मेरे दामन को छू कर वर्षों पहले गुजरी थी “अनुपम” की हर दास्ताँ तेरे दर्द-ऐ-जिक्र के बिना अधूरी थी. अनुपम चौबे